एक बार की बात है एक गांव था उस गांव में एक पुरानी हवेली थी जिसके अंदर एक गांव में किसी को भी यह बात नहीं पता थी कि वह कोई नहीं था बल्कि रास्ता था और लोग उसके जा सकते थे और दूसरी तरफ भूतों का एक गांव जहां तरह तरह के भूत साथ मिलकर रहते थे वह भूतों का गांव ठीक इस इंसानों के गांव जैसा ही था वैसे ही घर और वैसी पुरानी हवेली भी एक दिन जब दो दिन बाद होली का त्यौहार गांव में मनाया जा रहा था तब मनोज नाम का एक आदमी घर से बाहर काम के लिए निकला मनोज की बेटी प्रिया दौड़ते हुए बाहर आती है और उसे रोक लेती है .
Papa papa रुको आज आप लौटते वक्त मेरे लिए एक पिचकारियों और रंग लाएंगे ना और गुजिया भी ?
हां हां बेटा ज़रूर , मैं तुम्हारे लिए यह सब ले आऊंगा चिंता मत करो .
अब तुम अंदर अपनी दादी के पास जाओ .
अकेली है ना मनोज की पत्नी मीरा की बहुत समय पहले ही मौत हो गई थी उस समय प्रिया काफी छोटी थी मनोज जल्दी से प्रिया को वापस घर के अंदर जाने को कहता है और कुछ सोचते सोचते काम के लिए निकल जाता है यह सब चिंता मनोज चलते चलते गांव की हवेली के पास पहुंच जाता है अरे यह मैं चलते चलते कितना दूर आ गया और यह हवेली कितनी सुंदर है ?
क्या यह वही हवेली है जिसके बारे में मैंने बचपन से सुना है ?
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मनोज हवेली से बाहर निकलकर गाँव में घूमने निकल जाता है .
पर गाँव का नज़ारा देखकर मनोज की हालत ख़राब हो जाती है .
यह सब क्या है यहां तो मुझे कोई भी इंसान नहीं दिख रहा सब कहां चले गए भला कोई है कोई है चलो अपने घर को चलकर देखता हूं प्रिया ज़रूर होगी वहां मनोज अपने घर की तरफ बढ़ता है पर उसके होश उड़ जाते हैं जब वह घर के बाहर एक चुड़ैल को बैठे देखता है उस चुड़ैल के चेहरे पर रंग लगा हुआ था पर मनोज को घर के अंदर कोई भी नहीं दिखता आखिर यह सब मुझे नहीं रहना चाहिए वापस हवेली में जाना चाहिए वह शीशे से बाहर निकलकर शायद मैं अपनी दुनिया में पहुंच जाऊं ज़रूर यह भूतों की दुनिया है मनोज को वापस लौटते वक्त रास्ते में कई चुड़ैलों और भूत दिखाई देते हैं मनोज डर के मारे एक पेड़ के पीछे छुप जाता है .
तभी मनोज के पेड़ के पास एक भूतिया बच्चा गुजरता है और उसके हाथ से उसकी पिचकारी वहीं गिर जाती है .
बच्चे के जाते ही मनोज उस पिचकारी को उठा लेता है यह तो सोने की पिचकारी है यह भूत लोग सोने की पिचकारियों से होली खेलते हैं वाह कमाल हो गया यह तो लगता है कि मेरा काम वन गया मनोज उस पिचकारी को अपने कपड़े में छिपाकर रख लेता है तो तभी कुछ दूर पर उसकी नज़र पड़ती है कि कुछ दूर पर भूत मिलकर उनकी होली खेल रहे थे .
यह सब तो खून की होली खेल रहे हैं .
अगर मुझे इन सब से बचना है तो मुझे भी इन सब में घुलना मिलना होगा एक काम करता हूं कहीं से थोड़ा रंग ढूंढ कर खुद को पूरा रंग देता हूं फिर ये लोग मुझे बिल्कुल नहीं पहचान पाएंगे इसमें खतरा तो बहुत है पर मुझे प्रिया के लिए यह करना ही होगा वह घर पर मेरा इंतज़ार कर रही है मनोज धीमे से उठता है और पास में table पर रखे हुए रंग जल्दी से अपने पूरे मुंह और कपड़े पर लगा लेता है तभी पीछे से किसी की डरावनी आवाज़ सुनाई देती है तुम कौन हो पहले तो कभी तुम्हें यहां नहीं देखा मनोज बहुत डर जाता है फिर भी वह डरावनी आवाज़ निकालकर भूत से कहता है मैं मैं तो यहां दूसरे गांव से तुम लोगों की भूतिया होली party देखते आया था मैंने सुना है यहां बड़े अच्छे से मनाई जाती है होली .
बिल्कुल हमारे यहां तो होली खेलने के लिए रंग से लेकर इंसानों का खून भी मौजूद है .
इतना ही ज़िंदा इंसानों और जानवरों से बनी मिठाइयां भी है बताओ तुम क्या खाना चाहोगे मैं तुम्हारे लिए शुद्ध देसी घी से बनी गुजिया लेकर आता हूं फिर थोड़ी देर में भूत गुजिया का डब्बा लेकर आ जाता है .
यह लीजिए खाइए और ले जाइए अपने गांव में भी खिलाएगा भूतों को .
भूत वहां से गायब हो जाता है और मनोज बचते बचते हवेली की तरफ जाने लगता है कि तभी उसे हवेली के ठीक सामने एक चुड़ैल दिखाई देती है .
अब तुम कौन हो और यहां क्या कर रही हो ?
मुझे तुम कोई भूत तो नहीं लगते .
तुम कोई इंसान तो नहीं .
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प्रिया तुम्हारा इंतज़ार कर रही है .
क्या तुमने मुझे अब तक पहचाना नहीं मनोज ?
मैं और कोई नहीं .
मेरा हूं .
तुम्हारी पत्नी मनोज , तुम्हारी पत्नी .
मरने के बाद हम सभी भूत और चुरेली सी दुनिया में रहते हैं मनोज और तुम जब यहां आए तभी मुझे पता चल गया था तुम्हारा यहां होना खतरे से खाली नहीं है .
यह सारे भूत और चुड़ैल इंसानों के खून के प्यासे हैं , लेकिन आज यह होली party चल रही है .
इसीलिए सब उसी में व्यस्त हैं , तुम अब यहाँ से जल्दी जाओ .
मुझे बचाने के लिए शुक्रिया मीरा मैं बहुत खुशकिस्मत हूं जो तुमसे फिर से मिल सका और ये मुलाकात मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा .
तुम्हारा शुक्रिया मीरा और मैं प्रिया को तुम्हारे बारे में बताऊंगा और हां हम दोनों तुम्हें बहुत याद करते हैं यह सब मीरा के भूत से कहते हुए मनोज रोने लगता है और रोते रोते हवेली के अंदर आ जाता है वह सीधा उस चीज़ के पास जाता है और उसमें खुद कर वह अपनी असली दुनिया में बाहर निकल जाता है मनोज जल्दी से वह गुजिया का डब्बा लेकर और सोने की पिचकारी लेकर घर आ जाता है प्रिया के पास papa मैं कब त्याग का इंतज़ार कर रही थी आपने कितनी देर लगा दी ?
माफ करना बेटा , मुझे आने में जरा सी देर हो गई लेकिन देखो ना मैं तुम्हारे लिए कितना कुछ लाया हूँ अरे वाह papa गुजिया और ये क्या ये तो सोने की पिचकारी लग रही है हाँ प्रिय ये सोने की ही पिचकारी है .
कल इसे बाज़ार में बेचकर मैं बहुत सारे पैसे ले आऊंगा .
फिर मैं तुम्हारे लिए अच्छी सी पिचकारी और रंग लाऊंगा क्या सच में papa ये तो बहुत अच्छी बात है .
क्या तुम्हें पता है प्रिया आज आज मुझे तुम्हारी माँ मिली थी तो सीधे मुझे ये सब पिया और कहा कि तुम्हारा हमेशा ख्याल रखो .
क्या सच में papa आप मां से मिले ?
वह मुझे याद करती है क्या ?
बताओ न papa और क्या क्या कहा मां ने एक साथ इतने सवाल प्रिया तुम भी अपनी मां पर ही गई हो बैठो मैं तो फिर सब कुछ बताता हूं फिर मनोज और प्रिया ने मीरा के बारे में खूब बातें की और अगले दिन सोने की पिचकारी को बेचकर मनोज को काफी पैसे मिल जाते हैं जिससे वह एक नया business शुरू करता है और फिर दोनों बाप बेटी सुकून से रहने लगते हैं .