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और इसी तरह असर की नमाज मगरिब की नमाज , ईशा की नमाज और चारों नमाजे कसर करने क्यों कसर से क्या मुराद है दो रखते पढनी क्यों दो रखते पढनी पूरी नमाज क्यों नहीं पढनी अभी कहते हैं मैंने अल्लाह अल्लाह असलम के साथ भी हज क्या रखा वो अबुबकर मैंने अबुबकर और उम्र के साथ ये गया हूँ ।
सबने बिना के अंदर दो रखते ही पडी है वहाँ कुछ लोग कहेंगे कि यहाँ पूरी नमाज पडी जाये ।
सुनने को जिंदा कीजिएगा ।
लोगों की बातों में मत आईयेगा ही ही ही ।
वसल्लम ने जब वहाँ मीना में पहुँचे तो सुबह सूरज होने के बाद आपने अराफात मैदानी अराफात ये मुजदलिफा के बाद है तो मुझ को क्रॉस करके आपने पडाव डाला था ।
बाद ये रो राणा में या एक छोटा सा नुक्ता समझे एक है मैदानी आराफात बहुत दूध का ताई उनकी आवाज अरफाज से पहले है ।
वह अपने पढा वादी उडाना में डाला आप डॅान आपने अराफात नहीं पहुँचे लेकिन आजकल का सिस्टम ऐसा है ।
लोग ज्यादा होते हैं तो कुछ लोग में होते हैं मगर मैं सबको मैदाने अराफात में में ठहराया जाता है ।
संगत में आप रुके और जब सूरज जायन होने लगे , जोर का वक्त हो तो फिर आप सब अराफात की तरफ चले और वहाँ जोर असर की इकट्ठी नमाज पढी जाती है ।
दो दो रखते एक राजन दो तकदीरों के साथ और वहाँ ही मैदाने अराफात में ही जिसको मैदाने अराफात खुद कहते वहाँ खुद हो तो उसको सुना जाए और उसके बाद आप मैदान में रुके ।
मैदानी ये सामने आपको नजर आ रहा है ।
ये मैदानी नहीं ये मैदानी का हिस्सा है ।
इसको कहते हैं जॅान अल्लाह के रसूल अल्लाह असलम ने है कुल्लू ॅ अर फेकी ।
सारी जगह रुकने की जगह जहाँ भी आप जाए ये सुन्नत नहीं है कि आप जब भी रहमत जाए और अपने आप को चोट लगवाएं , किसी से अभी इसका इस्तेमाल नहीं किया ।
आपको जहाँ मौका मिलता है जो आ करे जिक्र करें पढे और वो जो हम ने बयान की है मैंने और मुझसे पहले अम्बिया ने जो की है अल्लाहु लहौल मुल्को वन राहुल हन्दू वह हुआ ये कश्यप से वहाँ जो आपकी जाए कि अजान के जब वक्त होगा उस वक्त तक वहाँ और जिक्र में इंसान को मशहूर रहना चाहिए ।
जो ही हो वहाँ से मुझे की तरफ वापिस आ जाएगा उससे पहले नहीं निकलना चाहिए मुँह हुआ वहाँ से निकले और आपसे बाबा को कह रहे थे बार बार कह रहे थे यकीन है सकून से चलो वकार से चलो और पैदल चले कुछ कुछ सवारियों पे थे मुझे पहुँच के आपने और ईशा की नमाज इकट्ठी है और कसर की और यहाँ नकली परीक्षा की नमाज पढने के बाद सो जाए ।
अगर कोई बूढी औरत है , बच्चे हैं , बूढे हैं तो उनके लिए इजाजत ये भी है कि वो फजर् से पहले भी यहाँ से मिलना जा सकते हैं ।
लेकिन अगर ऐसा नहीं तो फिर फजर की नमाज बजा मत , वहाँ पडे और सूरज चालू होने से पहले ये थोडी सी रोशनी हो जाए तो मीना करो करे ।
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लेकिन अगर आपको वक्त नहीं ऐसे माॅस् रहा है कि मैं इस तरह से चलूँ आप फंस गए आप पहले कुरबानी कर लेते हैं ये पहले बैतुल्ला जाकर तब आप कर लेते हैं ।
जायज है सही बुखारी की रिवायत एक हाबी आए अल्लाह कृष्ण मैंने पहले तब आप कर लिए फरमाया फॅमिली खर्च करते जाओ कोई एक आके कहते हैं मैंने पहले बॉल मिंट वाली अभी मैंने कुर्बानी नहीं की ।
फॅमिली जिस भी ऍफ का सवाल किया कि मैं पहले ये कर बैठा हूँ मैं पहले ये कर बैठा हूँ ।
आप यही फरमाते करते जाओ कोई नहीं इन चार काम करने ।
इन चार कामों में से दो काम अगर आप कर लें , फॅमिली हमारी है और आपने अपनी कुर्बानी कर ली है तो आपको ये इजाजत है कि आप अपने आम लिबास में आ जाए लेकिन ये इजाजत नहीं होगी कि आप अपनी बीवी के बस में जाएँ ।
दो काम के बाद इसको कहते ऍम आप आधे हलाल हो गए , आप और साइड करें और उसके साथ बाल मुंडवाए ।
जब चार काम कर लेंगे तो आप आम लिबास नदी आ गए और उसके साथ साथ आप उस भूमि जिंदगी में आ गए ।
जिस तरह आप आम जिंदगी गुजारते हैं तो ये दस तारीख को जो तब आप किया जाता है ये अगर छूट जाए या नियत करना रह जाए या कुछ मैदानी अरफात में ना जाए , जो तवा ना करे उस शख्स का हज नहीं होता ।
नियत नहीं , हज नहीं , मैदानी में नहीं गया ।
हज नहीं तब आप ने किया और सही नहीं कि ये दुकान है ।
इस तब आपको तुंरत भी कहते हैं ।
तो आप ये हाइट भी कहते हैं तो आपके इफाजा भी कहते हैं ।
लेकिन अगर किसी मुश्किल की वजह से आप दस तारीख को ये तो आप नहीं कर सके ।
आप ग्यारह को भी कर सकते हैं ।
आप बारह को भी कर सकते हैं ।
ऐसे मिसाइल बन जाते हैं ।
लेकिन उस वक्त तक आपको फिर मेहरान में रहना होगा अगर आप ने अभी तक कोई काम नहीं किया ।
अगर आप पहले दिन कर लेते हैं तो ये सबसे अच्छा है ।
आपने अगर पहले दिन चारों काम कर लिए तो वापस में ना में जाए ।
ग्यारह की रात भी वहाँ गुजारे बारह की रात वहाँ गुजारे लत अल्लाह की इबादत करे , दुआएं करें , जिक्र करें नवाफिल पढें जवाल का वक्त जब होता है उसके बाद आपने हर रोज इक्कीस कंकडियां इन शैतानों को मारनी है ।
नहीं शैतान बोल दिया है ये जमारात इसको कहते हैं क्योंकि वो जगह है जहां बरगलाना चाहता इब्राहीम मेरे साथ तो सलाम को शैतान ने और यहाँ कुछ लोग वाकई इसको शैतान समझ के उस गुस्से के साथ मारते हैं ।
कभी अपना बाजू बिचारे परेशानी की तरफ ले जाते हैं ।
एक सुन्नत है एक इबादत का तरीका क्या जो है वो अल्लाह जाॅब हमारे पहले जमरे को इसको छोटा शैतान कहते हैं थोडा सा आगे हटके राइट साइड पे होके आप दुआ करेंगे फिर आप सात संक्रिया उसके बाद ऍम दरमियाना जो शैतान उसको मारे फिर आॅफ साइट पे हो के द्वारा करें ।
फिर आप सात कंकरिया ऍम कुमारे उसके बाद दवा की नहीं ।
आप ग्यारह को भी ऐसा करें ।
बारह को भी ऐसा करे ।
लेकिन आप सब लोग जो मौजूद लोग थे उनको इजाजत दे दी थी ।
बकरियों के चरवाहे थे जो ये सत्तू पिलाने पानी पिलाने वाले थे , सियाका थे और उस वक्त जो लोग हाजियों की फिर करते थे उनको कहा कि एक दिन में आप सारी कंट्री मार के चले जाए ।
आप के साथ बच्चे और औरतें हैं तो आप उनकी तरफ से खुद भी कंकरिया मार सकते हैं ।
बच्चों को ले जाना और बडी औरतों को ले जाना जरूरी नहीं ।
सही जाबिर फरमाते हैं हो ।
हमने बच्चों की तरफ से तलबिया भी खुद कहा और सबकी तरफ से कंकरिया भी खुद मारी ।
अगर आप बारह तारीख से पहले पहले वापस जाना चाहते हैं ।
बैतुल्लाह की तरफ तो आपको इजाजत है कि आप तेरह दिन मुकदमा ना करें लेकिन अगर आप रुक जाए तो का काम है ।
अगर मगरी वहाँ होगी है तो फिर आपको तेरह दिन की कंकरिया भी मारना जरूरी होगी ।
आप जब तेरह दिन मुकम्मल करके कंकडियां बेतुल्ला वापस आते हैं ।
आप दो दिन रहे आठ दिन रहे जब आप यहाँ से रवाना होना चाहते हैं अपने वतन की तरफ या मदीना तैयबा की तरफ क्योंकि हज आपका हो गया हजका ताल्लुक मदीना से नहीं मक्का से आप वहाँ से जाने से पहले एक जरूरी काम करें जिसको तवा से अलविदा कहते हैं ।
महसूस खून आखिर बिल ऍम हाँ लोगों को काम दिया गया की आखरी कम बेतुल्ला से निकलते वक्त तवाफ करना है लेकिन हाइजा औरत के लिए तक है ।
अगर वो ऐसे श्याम में है तो वो तो अलविदा ना भी करे तो उसके गुनाह नहीं मगर ना ये बाजी बात में से है इसको छोडने पे दम पडेगा तो इसका ये मतलब लव ये है बिल कुछ लोग क्या कहते हैं कि अलविदा के बाद आपने ना बेतला में होना है ना होटल में जाना है बस वहाँ से निकल जाए ।
मक्का जैसी सख्ती नहीं बताई ।
बस इसको धक्का दो ।
खबरदार ये दाएं बाएं देखे निकल जाए मक्का से कौन सी फॉर्म में कहाँ से फॉर्म आयी ?
खून आखिर वाधीन दिल दयी दिल में दिमक का नहीं ।
कहा कि मक्का में रहने की शर्त है कि अगर आपने तो आप कर लिया तो आप एक घंटा रुक ही नहीं सकते ।
अपना सामान नहीं उठा सकते और अपने खाने पीने की जरूरत नहीं पूरा कर सकते ।
या ये है कि आप उस वक्त परेशानी की हालत में अपने बुजुर्ग करना है और आपने जाना है वॉशरूम में तो जा ही नहीं सकते ।
नहीं दीन वो है जो हम ने सिखाया और लाभ से आखिर वाधीन दिल दयी बैतुल्ला में आखिरी काम ये होना चाहिए तो आप अलविदा के बाद आप वहाँ से आ जाइए , अपना सामान समेटी और जब आपको मिस्टर है गाडी उसके मुताबिक आप मदीना जाए ये अपने वतन वापस आए और मैं ये कहूँगा मदीना जरूर चाहिए ।
मस्जिद नवी में नमाज एक हजार नमाज या उससे अफसल नमाज का सवाल है वहाँ जाइए और मैं कुमार जाइए घर से बुजुर्ग करके , होस्टल करके आप जाए और वहाँ जाके दो रखते पडेंगे ।
उम्र का सवाब मिलेगा आप नवी में ज्यादा से ज्यादा आप पहले सपने बैठने की कोशिश करें और यादव जनना ले जाए ।
जहाँ बैठे अबरूध पडेंगे वो अल्लाह के स्कूल को पहुँचेगा ।
अगर वहाँ भी जाना चाहते हैं उबाल कर के सामने तो वही मामूल जो हम आम दुनिया में मामूल है ।
आप गुजरते फॅमिली तीनों की ही वहाँ मुबारक खबरे हैं ।
लेकिन ये था ऍम ।
सवा दुनिया के किसी में भी है ।
आप वहाँ भी दूध पडेंगे ।
वो आपके ग्रुप अल्लाह पहुँचा देते हैं , इसी में बैठे रहते हैं और इस तरह नहीं जाया करते थे ।
आपको ये बात भी जहन में होनी चाहिए ।
चालीस दिन आप अगर तकबीर ओला के साथ नमाज पढते हैं एक तो मुनाफिक नहीं होंगे दूसरा आपको जहाँ नाम से आजाद कर दिया जाएगा ।
ये है हरीश और लोग क्या कहते है चालीस नमाजे अगर मदीना में ना पडे तो ये नुकसान होगा इसका हर इसमें कोई जरूरत नहीं है ।
दिन वो है जो कुरान मेहर सही है ।
अब मामूल बनाइए कि मैंने चालीस दिन क्या जिंदगी में तस्वीरें ओला के साथ नमाज पढने पर मुझे ये वाक्य बहुत ही अच्छा लगता है ।
मैंने कई मतलब शेर क्या साथियों से आपसे भी शेर किये देता हूँ बाबे पात के बाहर गुजरते चंद साल पहले की बात है में खडा था एक शख्स आया और आके कहता है एक दुआ कर दे फिर मैं इसको जानता था रियाज का रहने वाला था ।
मैंने कहा क्या दुआ करवानी कहते हरी सुनी थी कि चालीस दिन जो तस्वीरें बोला के साथ नमाज है ।
मुनाफिक नहीं हो गया ।
जन्म से आजाद होगा ।
सैंतीस दिन हो गए बेतुल्लाह पहले तक वीरे उन्हीं के साथ मैंने नमाजें पढी है ।
दुआ कर दे तीन दिन जिंदगी और मिल जाए मेरी ये खास पूरी हो जाए ।
कुछ किस्मत ऐसी खास करते हैं ।
इसके साथ ही तो अलविदा कर लिया ।
इसके साथ ही हो जाता है मरीना में जितने दिन रहे जलाल की इबादत करे और खैर के साथ बर्तन वापिस आए ।
जलाल से दवा है , इस साल जाने वाले हैं ।
उनके हज को कबूल फरमा ले और मोल करीब वो तमाम बरकतें ये समेटने वाले हो तेरे पेगंबर की प्यारी जुबान ने बयान किए हैं हर किस्म की बीमारी और हर किस्म के ऐसे खाली इनको महसूस फरमाना ये आफियत के साथ जाएँ और आफियत के साथ बरकतों को अपने दामन में समेट के लाएँ और जो इस साल नहीं जा रहे ना तेरी रहमत के खजाने बहुत वासी हैं तो सबके लिए आसानियां फरमा दे और सबको अपने घर की जियारत नसीब फर्मा अल्लाह की दावत और लोगों तक पहुंचाने के लिए इस विडियो को जरूर लाइव शेर , कमेंट और सब्स्क्राइब करेंगे